मुझे चाँद देखना पसंद है,
उसे चाँद सा दिखना पसंद है।
वो भी अपने दाग नहीं छुपाती,
आँखों में काजल, माथे पे बिंदी नहीं लगाती।
होठों को उन्हीं के हाल पर छोड़ देती है,
मुस्कुराते ही समझ के सारे बंध तोड़ देती है।
उसे कौन सिखाए सजना-संवरना,
बदल न जाए इस दुनिया का हाल वरना।
मैं खुश हूँ,
कि वो आईने से अपना हाल नहीं पूछती।
"ये वो, हाँ नहीं?"
बेसबब सवाल नहीं पूछती।
सोचो अगर वो काजल लगा ले,
एक दफ़ा बस उलझे बाल सुलझा ले।
ये ज़माना अपना रुख न बदल ले,
हर कोई उसके साथ न चल दे।
हवाएँ रुक न जाएँ उसे देखने को कहीं,
मैंने जब से देखा है, हूँ मैं वहीं।
उसे देखा है जब से, होश आने लगा है,
ज़माने का सारा खौफ़ जाने लगा है।
उसे कोई तोहफ़ा देने को जी चाहता है,
मगर उसके लायक कुछ कहाँ आता है।
वो काजल-बिंदी, गालों पे रूज़ नहीं लगाती,
वो कानों को झुमके तले नहीं दबाती।
उसे उड़ना पसंद है,
सोचता हूँ उसे हवाएँ दे दूँ।
उसके पंखों को दिल की सदाएँ दे दूँ।
फिर सोचता हूँ,
वो क्या करेगी मेरे फ़िज़ूल इशारों का।
उसकी हँसी का अपना कारोबार है बहारों का।
उसे मेरी ज़रूरत नहीं,
वो आज़ाद है किसी भी क़ैद से।
मैं उसे मोहब्बत में भी क्यों बाँधूँ।
ये दुनिया बाँध देगी उसे मुझसे,
वो मेरे नाम के कंगन पहन भी लेगी,
आँखों को घूँघट से ढक भी लेगी।
मगर रहेगी क्या वो,
जिसकी चाह निकली थी मेरे मन से।
मुझे उसके दागों से मोहब्बत है,
है उसके अल्हड़पन से।
मेरे दिल में जब भी इस प्यार का इज़हार आता है,
मुझे उसकी आज़ादी का ख़याल आता है।
यही सोचते हुए उसकी गली से रुख मोड़ लेता हूँ,
तीरछी आँखों से देखा हूँ उसे और बस छोड़ देता हूँ।
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